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Tuesday, July 9, 2019

केदारनाथ मन्दिर

केदारनाथ मन्दिर


केदारनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है। उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। यहाँ की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मन्दिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्‍य ही दर्शन के लिए खुलता है। पत्‍थरों से बने कत्यूरी शैली से बने इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डव वंश के जनमेजय ने कराया था। यहाँ स्थित स्वयम्भू शिवलिंग अति प्राचीन है। आदि शंकराचार्य ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया।



केदारनाथ की बड़ी महिमा है। उत्तराखण्ड में बद्रीनाथ और केदारनाथ-ये दो प्रधान तीर्थ हैं, दोनो के दर्शनों का बड़ा ही माहात्म्य है। केदारनाथ के संबंध में लिखा है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किये बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल जाती है और केदारनापथ सहित नर-नारायण-मूर्ति के दर्शन का फल समस्त पापों के नाश पूर्वक जीवन मुक्ति की प्राप्ति बतलाया गया है


इस मन्दिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, पर एक हजार वर्षों से केदारनाथ एक महत्वपूर्ण तीर्थयात्रा रहा है। राहुल सांकृत्यायन के अनुसार ये 10-12 वीं शताब्दी का है। ग्वालियर से मिली एक राजा भोज स्तुति के अनुसार उनका बनवाय हुआ है जो 1076-99 काल के थे। एक मान्यतानुसार वर्तमान मंदिर 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया जो पांडवों द्वारा द्वापर काल में बनाये गये पहले के मंदिर की बगल में है। मंदिर के बड़े धूसर रंग की सीढ़ियों पर पाली या ब्राह्मी लिपि में कुछ खुदा है, जिसे स्पष्ट जानना मुश्किल है। फिर भी इतिहासकार डॉ शिव प्रसाद डबराल मानते है कि शैव लोग आदि शंकराचार्य से पहले से ही केदारनाथ जाते रहे हैं। 1882 के इतिहास के अनुसार साफ अग्रभाग के साथ मंदिर एक भव्य भवन था जिसके दोनों ओर पूजन मुद्रा में मूर्तियाँ हैं। “पीछे भूरे पत्थर से निर्मित एक टॉवर है इसके गर्भगृह की अटारी पर सोने का मुलम्मा चढ़ा है। मंदिर के सामने तीर्थयात्रियों के आवास के लिए पण्डों के पक्के मकान है। जबकि पूजारी या पुरोहित भवन के दक्षिणी ओर रहते हैं। श्री ट्रेल के अनुसार वर्तमान ढांचा हाल ही निर्मित है जबकि मूल भवन गिरकर नष्ट हो गये।” केदारनाथ मन्दिर रुद्रप्रयाग जिले में है उत्तरकाशी जिले में नही |

मंदिर वास्तुशिल्प

 

यह मन्दिर एक छह फीट ऊँचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है। मन्दिर में मुख्य भाग मण्डप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। बाहर प्रांगण में नन्दी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं। मन्दिर का निर्माण किसने कराया, इसका कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन हाँ ऐसा भी कहा जाता है कि इसकी स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी।

मन्दिर की पूजा श्री केदारनाथ द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक माना जाता है। प्रात:काल में शिव-पिण्ड को प्राकृतिक रूप से स्नान कराकर उस पर घी-लेपन किया जाता है। तत्पश्चात धूप-दीप जलाकर आरती उतारी जाती है। इस समय यात्री-गण मंदिर में प्रवेश कर पूजन कर सकते हैं, लेकिन संध्या के समय भगवान का श्रृंगार किया जाता है। उन्हें विविध प्रकार के चित्ताकर्षक ढंग से सजाया जाता है। भक्तगण दूर से केवल इसका दर्शन ही कर सकते हैं। केदारनाथ के पुजारी मैसूर के जंगम ब्राह्मण ही होते हैं।

स्थिति

इसका निर्माण पांडवों या उनके वंशज जन्मेजय द्वारा करवाया गया था। साथ ही यह भी प्रचलित है कि मंदिर का जीर्णोद्धार जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने करवाया था। मंदिर के पृष्ठभाग में शंकराचार्य जी की समाधि है। राहुल सांकृत्यायन द्वारा इस मंदिर का निर्माणकाल 10वीं व 12वीं शताब्दी के मध्य बताया गया है। यह मंदिर वास्तुकला का अद्भुत व आकर्षक नमूना है। मंदिर के गर्भ गृह में नुकीली चट्टान भगवान शिव के सदाशिव रूप में पूजी जाती है। केदारनाथ मंदिर के कपाट मेष संक्रांति से पंद्रह दिन पूर्व खुलते हैं और अगहन संक्रांति के निकट बलराज की रात्रि चारों पहर की पूजा और भइया दूज के दिन, प्रातः चार बजे, श्री केदार को घृत कमल व वस्त्रादि की समाधि के साथ ही, कपाट बंद हो जाते हैं। केदारनाथ के निकट ही गाँधी सरोवर व वासुकीताल हैं। केदारनाथ पहुँचने के लिए, रुद्रप्रयाग से गुप्तकाशी होकर, 20 किलोमीटर आगे गौरीकुंड तक, मोटरमार्ग से और 14 किलोमीटर की यात्रा, मध्यम व तीव्र ढाल से होकर गुज़रनेवाले, पैदल मार्ग द्वारा करनी पड़ती है।

मंदिर मंदाकिनी के घाट पर बना हुआ हैं भीतर घारे अन्धकार रहता है और दीपक के सहारे ही शंकर जी के दर्शन होते हैं। शिवलिंग स्वयंभू है। सम्मुख की ओर यात्री जल-पुष्पादि चढ़ाते हैं और दूसरी ओर भगवान को घृत अर्पित कर बाँह भरकर मिलते हैं, मूर्ति चार हाथ लम्बी और डेढ़ हाथ मोटी है। मंदिर के जगमोहन में द्रौपदी सहित पाँच पाण्डवों की विशाल मूर्तियाँ हैं। मंदिर के पीछे कई कुण्ड हैं, जिनमें आचमन तथा तर्पण किया जा सकता है।

Thursday, July 4, 2019

Kaila Devi Temple

कैला देवी मंदिर

( Kaila Devi Temple )

यहाँ डकैत भी आकर करते है माँ काली की साधना

Kaila Devi Temple

कैला देवी मंदिर सवाई माधोपुर के निकट राजस्थान के करौली जिले में स्थित एक प्राचीन मंदिर है। कैला देवी मंदिर में चांदी की चौकी पर स्वर्ण छतरियों के नीचे दो प्रतिमाएं हैं। इनमें एक बाईं ओर उसका मुंह कुछ टेढ़ा है, वो ही कैला मइया है। दाहिनी ओर दूसरी माता चामुंडा देवी की प्रतिमा है। कैला देवी की आठ भुजाएं हैं। मंदिर उत्तर भारत के प्रमुख शक्तिपीठ के रूप में ख्याति प्राप्त है।

मंदिर का इतिहास

उत्तर भारत के प्रमुख शक्तिपीठ के रूप में ख्याति प्राप्त कैला देवी मंदिर देवी भक्तों के लिए पूजनीय है, यहाँ आने वालों को सांसारिक भागमभाग से अलग अनोखा सुकून मिलता है। त्रिकूट मंदिर की मनोरम पहाड़ियों की तलहटी में स्थित इस मंदिर का निर्माण राजा भोमपाल ने 1600 ई. में करवाया था। इस मंदिर से जुड़ी अनेक कथाएं यहाँ प्रचलित है। माना जाता है कि भगवान कृष्ण के पिता वासुदेव और देवकी को जेल में डालकर जिस कन्या योगमाया का वध कंस ने करना चाहा था, वह योगमाया कैला देवी के रूप में इस मंदिर में विराजमान है।



एक अन्य मान्यता के अनुसार पुरातन काल में त्रिकूट पर्वत के आसपास का इलाका घने वन से घिरा हुआ था। इस इलाके में नरकासुर नामक आतातायी राक्षस रहता था। नरकासुर ने आसपास के इलाके में काफ़ी आतंक कायम कर रखा था। उसके अत्याचारों से आम जनता दु:खी थी। परेशान जनता ने तब माँ दुर्गा की पूजा की और उन्हें यहाँ अवतरित होकर उनकी रक्षा करने की गुहार की। बताया जाता है कि आम जनता के दुःख निवारण हेतु माँ कैला देवी ने इस स्थान पर अवतरित होकर नरकासुर का वध किया और अपने भक्तों को भयमुक्त किया। तभी से भक्तगण उन्हें माँ दुर्गा का अवतार मानकर उनकी पूजा करते हुए आ रहे हैं। कैला देवी का मंदिर सफ़ेद संगमरमर और लाल पत्थरों से निर्मित है, जो स्थापत्य कला का बेमिसाल नमूना है। 
इसलिए तिरछा है माता का चेहरा

माना जाता है कि मंदिर में स्थापित मूर्ति पूर्व में नगरकोट में स्थापित थी। विधर्मी शासकों के मूर्ति तोड़ो अभियान से आशंकित उस मंदिर के पुजारी योगिराज मूर्ति को मुकुंददास खींची के यहां ले आए। केदार गिरि बाबा की गुफा के निकट रात्रि हो जाने से उन्होंने मूर्ति बैलगाड़ी से उतारकर नीचे रख दी और बाबा से मिलने चले गए। दूसरे दिन सुबह जब योगिराज ने मूर्ति उठाने की चेष्टा की तो वह उस मूर्ति हिला भी नहीं सके। इसे माता भगवती की इच्छा समझ योगिराज ने मूर्ति को उसी स्थान पर स्थापित कर दिया और मूर्ति की सेवा करने की जिम्मेदारी बाबा केदारगिरी को सौंप कर वापस नगरकोट चले गए।

Wednesday, July 3, 2019

Raksh-bandan

रक्षा बंधन

रक्षाबंधन हिन्दू समाज का भूत ही महत्वपूर्ण तेवहर है।
ये रीस्तो को मजबूत बनाने के लिए पूरे भारत में मनाया जाता है।
यह तेवहार भाई बहन के रिश्ते को बताता है।

Tuesday, May 3, 2016

Simhasth

                                      the maha simhastha
                   

                            the only in india is world's  first country provided maha simhastha . the simhastha is very important to hindu. 

                     i just provided some information the simhastha.....
  • it is come in after 12 year.
  • the god shiva save the earth and provide Honeydew (amarat).
  • the maha simhastha fair made 4 city only in india.
  1. haridwar
  2. ujjain
  3. nasik
  4. allahabad
  • it is make fore different place and different time.
  • the god shiva drinks poison and provided honeydew fore save the earth.



                           
In the Monk prayer (Meditation) god for good mind, good health, and etc.






thanks to read